पापानलस्य दीप्तस्य मा कुर्वन्तु भयं नरा:। गोविन्दनाममेघौघैर्नश्यते नीरबिन्दुभि:॥
लोग प्रज्वलित पापागिन् से भय न करें; क्योंकि वह गोविन्दनामरूपी मेघसमूहों के जल-बिन्दुओं से नष्ट हो जाती है।
अवशेनापि यन्नामिन् कीर्तिते सर्वपातकै:। पुमान् विमुच्यते सद्य: सिंहत्रस्तैमर्ृगैरिव॥
विवश होकर भी भगवान् के नाम का कीर्तन करने पर मनुष्य समस्त पातकों से उसी प्रकार मुक्त हो जाता है, जैसे सिंह से डरे हुए भेडिये अपने शिकार को छोडकर भाग जाते हैं।
यन्नामकीर्तनं भक्त्या विलापनमनुत्तमम्। मैत्रेयाशेषपापानां धातूनामिव पावक:॥
हे मैत्रेय! भक्तिपूर्वक किया गया भगवन्नाम-कीर्तन उसी प्रकार समस्त पापों को विलीन कर देनेवाला सर्वोत्तम साधन है, जैसे धातुओं की सारे मैल को जला डालने के लिये आग।
सायं प्रातस्तथा कृत्वा देवदेवस्य कीर्तनम्। सर्वपापविनिर्मुक्त : स्वर्गलोके महीयते॥
मनुष्य सायं और प्रात:काल देवाधिदेव श्रीहरि का कीर्तन करके सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में सम्मानित होता है।
नारायणो नाम नरो नराणां प्रसिद्धचौर: कथित: पृथिव्याम्।
अनेकजनमार्जितपापसंचयं हरत्यशेषं श्रुतमात्र एव॥
(वामनपुराण)
इस पृथ्वी पर नारायण नामक एक नर (व्यक्ति ) प्रसिद्ध चोर बताया गया है, जिसका नाम एवं यश कर्ण-कुहरों में प्रवेश करते ही मनुष्यों की अनेक जन्मों की कमायी हुई समस्त पापराशि को हर लेता है।
गोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्तिवर्जितै:। दहते सर्वपापानि युगान्तागिन्रिवोत्थित:॥
(स्कन्दपुराण)
मनुष्य भक्तिभाव से या भक्तिरहित होकर यदि गोविन्दनाम का उच्चरण कर ले तो वह नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध कर देता है, जैसे युगान्तकाल में प्रज्वलित हुई प्रलयागिन् सारे जगत् को जला डालती है।
गोविन्दनामन य: कश्चिन्नरो भवति भूतले। कीर्तनादेव तस्यापि पापं याति सहस्त्रधा॥
भूतल पर जो कोई भी मनुष्य गोविन्द नाम से प्रसिद्ध होता है, उसके भी उस नाम का कीर्तन करने से ही पाप के सहस्त्रों टुकडे हो जाते हैं।
प्रमादादपि संस्पृष्टो यथानलकणो दहेत्। तथौष्ठपुटसंस्पृष्टं हरिनाम दहेदघम्॥
जैसे असावधानी से भी छू ली गयी आग की कणिका उस अङ्ग को जला देती है, उसी प्रकार यदि हरिनाम का ओष्ठपुट से स्पर्श हो जाय तो वह पाप को जलाकर भस्म कर देता है।
अनिच्छयापि दहति स्पृष्टो हुतवहो यथा। तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपीरितम्॥
(पद्मपुराण)
जैसे अनिच्छा से भी स्पर्श कर लेने पर आग शरीर को जला देती है उसी प्रकार किसी बहाने से भी लिया गया गोविन्दनाम पाप को दग्ध कर देता है।
नराणां विषयान्धानां ममताकुलचेतसाम्। एकमेव हरेर्नाम सर्वपापविनाशनम्॥
(बृहन्नारदीय)
ममता से व्याकुल-चित्त हुए विषयान्ध मनुष्यों के समस्त पापों का नाश करने वाला एकमात्र हरिनाम ही है।
कीर्तनादेव कृष्णस्य विष्णोरमिततेजस:। दुरितानि विलीयन्ते समांसीव दिनोदये॥
(पद्मपुराण)
अमित तेजस्वी सर्वव्यापी भगवान् श्रीकृष्ण के कीर्तनमात्र से समस्त पाप उसी तरह विलीन हो जाते हैं, जैसे दिन निकल आने पर अन्धकार।
सांकेत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा। वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं विदु:॥
(श्रीमद्भागवत)
संकेत, परिहास, स्तोभ या अनादरपूर्वक भी किया हुआ भगवान् विष्णु के नामों का कीर्तन सम्पूर्ण पापों का नाशक है- ऐसा महात्मा लोग जानते हैं।
अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोकनाम यत्। संकीर्तितमघं पुंसो दहेदेधो यथानल:॥
जैसे अगिन् लकडी को जला देती है, उसी प्रकार जानेअनजाने लिया गया भगवान् पुण्यश्लोक का नाम पुरुष की पापराशि को भस्म कर देता है।
नामनेऽस्य यावती शक्ति : पापनिर्हरणे हरे:। तावत्कर्तु न शकनेति पातकं पातकी जन:॥
(बृहद्विष्णुपुराण)
श्रीहरि के इस नाम में पापनाश करने की जितनी शक्ति है, उतना पातक पातकी मनुष्य अपेन जीवन में कर ही नहीं सकता।
श्वादोऽपि नहि शकनेति कर्तु पापानि मानत:। तावन्ति यावती शक्तिर्विष्णुनामनेऽशुभक्षये॥
भगवान् विष्णु के नाम में पापक्षय करने की जितनी शक्ति विद्यमान है, माप-तोल में उतने पाप कुक्कुरभोजी चाण्डाल भी नहीं कर सकता।