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Friday, May 21, 2010

केदारनाथ नाथ के पंच केदार

उत्तरांचलमें चार ऐसे प्रमुख धाम यानी तीर्थस्थलहैं, जिनके दर्शनार्थ भक्तों की भारी भीड उमडती है। इनके नाम हैं- केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री।वैसे तो केदारनाथ धाम के कपाट 18मई से और बद्रीनाथ के कपाट 19मई से खुल रहे हैं, लेकिन इनके लिए दूर-दराज से आने वाले तीर्थयात्रियों की आधिकारिक चार धाम यात्रा 16मई से ही आरंभ हो रही है। इसका मतलब यह है कि केदारनाथ के कपाट खुलने के शुभ अवसर पर बाहर हजारों की तादाद में दर्शनार्थी पहुंच चुके होंगे।

आमतौर पर गंगोत्री और यमुनोत्रीके बाद श्रद्धालु केदारनाथ की यात्रा करते हैं। उत्तरांचल के रुद्रप्रयागजिले में है केदारनाथ। प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य, आस्था और भक्ति का संगम है केदारनाथ धाम। यहां पहुंचने के लिए आपको पहाडों की श्रृंखला के अद्भुत नजारों के बीच सर्पीलीसडक से गौरीकुंडतक पहुंचना होगा। यहां से आगे 14किमी. की यात्रा आपको पैदल ही करनी होगी। इस यात्रा के बाद जब आप केदारनाथ के पास पहुंचते हैं, तो पहाडों से उतरती मंदाकिनी का जल दूध के समान सफेद दिखाई पडता है। चौराबारीहिमनद के कुंड से निकली है मंदाकिनी नदी। केदारनाथ पर्वत शिखर के समीप है केदारनाथ मंदिर, जो समुद्र तल से 3562मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह कत्यूरीशैली में बना दर्शनीय मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार जगत गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में सदाशिवप्रतिष्ठित हैं। पांच रूपों में विराजमान होने के कारण शिवलिंगपंच केदार कहलाते हैं।

[केदारनाथ ज्योतिर्लिग]भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है केदारनाथ। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, केदारनाथ में शिवलिंग,तुंगनाथ में बाहु, रुद्रनाथमें मुख, मध्य महेश्वर में नाभि, कल्पेश्वरमें जटा के रूप में शिव की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जीवंत मूर्ति स्थापित की गई है। हर साल मई से अक्टूबर के बीच केदारनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यहां नागनाथ शरदोत्सव, जोशीमठशरदोत्सव, शिवरात्रि गोपेश्वरनंदा देवी नौटी,नवमी जसोलीहरियाली, रूपकुंडमहोत्सव बेदनीबुग्याल,कृष्णा मेला जोशी मठ, गौचरमेला, अनुसूयादेवी आदि कई मेले आयोजित होते हैं। केदारनाथ के निकट ही गांधी सरोवर व बासुकी ताल है।

[रुद्रनाथ गुहा मंदिर] मंदाकिनी और अलकनंदानदी के बीचों-बीच स्थित है रुद्रनाथगुहा मंदिर। यहां गुहा को एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है। आंतरिक भाग में शिवलिंगहै, जिस पर जल की बूंदेंटपकती रहती हैं।

[कल्पेश्वर] केदारखंडपुराण में उल्लेख है कि कल्पस्थलमें दुर्वासाऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। कल्पेश्वरकल्पगंगाघाटी में स्थित है। कल्पगंगाका प्राचीन नाम हिरण्यवतीथा। दायें तट पर दूरबसाभूमि है, जहां ध्यान बद्री का मंदिर है। विशाल कल्पेश्वरचट्टान के पाद में गुहा है, जिसके गर्भ में स्वयंभू शिवलिंगविराजमान हैं। [मध्य महेश्वर] स्थापत्य की दृष्टि से यह पंच केदारोंमें सर्वाधिक आकर्षक है। मंदिर का शिखर स्वर्ण कलश से अलंकृत है। पृष्ठभाग में हर गौरी की प्रतिमाएं हैं। छोटे मंदिर में पार्वती की मूर्ति है। मंदिर के मध्य भाग में नाभि क्षेत्र के समान एक लिंग है। मान्यता है कि मध्य महेश्वर लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य स्वर्ग में स्थान पा लेता है। मध्य महेश्वर से 2किमी. मखमली घास और फूलों से भरपूर ढालों को पार कर बूढा मध्य महेश्वर है, जहां क्षेत्रपालदेवता मंदिर है। इसमें धातु निर्मित मूर्ति स्थापित है। इससे आगे ताम्र पात्र में प्राचीन मुद्राएं रखी हैं। गुप्त काशी से 7किमी. दूर काली मठ में काली मां का गोलाकार मंदिर है।

[तुंगनाथ] चंद्रशिलाशिखर (3680 मीटर) के नीचे तुंगनाथ विद्यमान है। तराशे प्रस्तरोंसे निर्मित तुंगनाथ मंदिर लगभग ग्यारह मीटर ऊंचा है। इसके शिखर पर 1.6मीटर ऊंचा स्वर्ण कलश है। सभा मण्डप के ऊपर गजसिंहहै। यह काले रंग के पिण्डाकारशिवलिंगसे सुशोभित है। इसके अलावा, यहां स्वर्ण और रजत से बनी पांच प्रतिमाएं हैं। तुंगनाथ से दस किमी. दूरी पर देवरिया ताल है। इसके जल में बद्रीनाथ शिखर मन मोह लेता है।

Wednesday, May 5, 2010

सृजन और विनाश

प्रभु ने सृष्टि की रचना ही नहीं की उसका संचालन भी कर रहा है। जितनी अद्भुत रचना है उतना ही अद्वितीय संचालन भी है। उसने वायु बनाई और जल उत्पन्न किया। जल के संरक्षण के लिए धरती बनाई और उस धरती को ही जल पर टिका दिया। पानी के सिंचन से वनस्पतियां हरी भरी हुई, विकसित हुई।

वायु-जल-अग्नि ये तीनों परस्पर विरोधी तत्व हैं किंतु परमात्मा ने इन तत्वों को एक साथ रखकर उनमें सामंजस्य स्थापित कर दिया। इसी तरह सृष्टि, जो इन मूल तत्वों पर टिकी है, के संचालन में भी विलक्षण प्रकट होती है। सबसे बडी विशिष्टता है कि सृष्टि दो धुर विरोधी तत्वों से संचालित हो रही है। एक ओर सृजन हो रहा है दूसरी ओर जो सृजित हो चुका है उसका विनाश हो रहा है। यह सृजन और विनाश की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। सृष्टि में उपस्थित प्रत्येक रचना की एक निश्चित आयु है जिसके उपरांत उसे नष्ट होना है। &द्यह्ल;क्चक्त्र&द्दह्ल;&ड्डद्वश्च;ठ्ठढ्डह्यश्च;&ड्डद्वश्च;ठ्ठढ्डह्यश्च; सृजन और विनाश के माध्यम से परमात्मा मनुष्य को पल-पल संदेश दे रहा है कि मनुष्य विनाश के बारे में भूल न जाए। यदि मनुष्य की स्मृति में क्षणभंगुरता रहती है तो कदाचित् वह अहम् से विरत रहेगा, दुष्कर्मो से विमुख रहेगा और प्रभु की ओर उन्मुख होगा। जिसकी शरण में है उसके जीवन का उद्धार है। मृत्यु निश्चित है किंतु पता नहीं कि उसकी आयु कितनी है। आयु कई वर्षो की, महीनों की, पलों की अथवा पल भर की भी हो सकती है। अत:मनुष्य की वस्तुत:आयु उसी एक पल की है जिसे वह जी रहा है। सृष्टि में विनाश की चल रही प्रक्रिया यही बता रही है। कौन सा पत्ता शाख से अलग होकर कब गिर पडेगा कहा नहीं जा सकता। किंतु यह विनाश हताशा और निराशा की ओर ले जाने वाला नहीं है। विनाश है तो सृजन भी हो रहा है। इससे परमात्मा में विश्वास दृढ होता है और सत् मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। मृत्यु के भय में जीवन को जीना असंभव है, किंतु मृत्यु के सत्य को जब स्वीकार कर लिया जाए और परमात्मा के न्याय पर विश्वास को टिकाते हुए उसकी शरण में जाकर स्व का समर्पण कर दिया जाए, तो जीवन परमात्मा के रस से सराबोर हो जाता है और जिसे परमात्मा का रस मिल जाए उसके आनंद की सीमा नहीं रहती। बाकी सभी रस फीके लगने लगते हैं।