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Tuesday, September 21, 2010

पाक में हिंदुओं के अधिकार हनन को लेकर चिंता जताई

वाशिंगटन। अमेरिका के एक हिंदू संगठन ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों खास कर हिंदुओं के अधिकार हनन को लेकर गंभीर चिंता जताई है।

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन [एचएएफ] ने पाकिस्तान में सिंधी हिंदुओं के अधिकारों के हनन को लेकर यह चिंता जताई है। एचएएफ के प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका स्थित पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात कर चिंता व्यक्त की। पाकिस्तानी दूतावास अधिकारियों के साथ मुलाकात में एचएएफ प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के सिंध इलाके में चिकित्सा सहायता के लिए तत्काल डाक्टरों का एक दल वहां भेजने का प्रस्ताव रखा। एचएएफ के अरविंद चंद्रकांतन ने बताया कि पाकिस्तानी हिंदू सिंधी समुदाय को समुचित आहार, मनोविज्ञानी चिकित्सा और पुनर्वास की जरूरत है।

उन्होंने बताया कि हम लोगों को पूरा विश्वास है कि हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन का चिकित्सा दल वहां के समुदाय की जरूरत पूरी कर सकता है और चिकित्सा सुविधा मुहैया करा सकता है।

भेंट के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने दूतावास को एचएएफ के मानव अधिकारों पर अपनी रिपोर्ट 'हिंदूज इन साउथ एशिया एंड द डायस्पोरा : ए सर्वे आफ ह्यूमन राइट्स 2009' के नवीनतम संस्करण की प्रति भी भेंट की।

दुनिया का तीसरा सबसे ताकतवर देश है भारत

वाशिंगटन। दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत को सलाम करते हुए अमेरिका की एक सरकारी रिपोर्ट ने हिंदुस्तान को दुनिया का तीसरा सबसे ताकतवर राष्ट्र घोषित किया है।

सबसे ताकतवर देशों की ताजा सूची में भारत का शुमार अमेरिका और चीन के बाद तीसरे सबसे शक्तिशाली देश के रूप में किया गया है। यह संभावना भी जाहिर की गई है कि उसका दबदबा वर्ष 2025 तक और बढ़ेगा।

नेशनल इंटेलीजेंस निदेशक कार्यालय की नेशनल इंटेलीजेंस काउंसिल तथा यूरोपीय संघ के इंस्टीट्यूट फार सिक्योरिटी स्टडीज [ईयूआईएसएस] ने 'ग्लोबल गवर्नेंस 2025' शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है। अंतरराष्ट्रीय फ्यूचर्स माडल के मुताबिक वर्ष 2025 तक अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान तथा रूस की ताकत घटेगी, जबकि चीन, भारत तथा ब्राजील और शक्तिशाली हो जाएंगे।

2013 में सूर्य मचा सकता है तबाही..

लंदन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2013 में सूर्य से एक ऐसी विशाल दमक पैदा होगी जिससे पृथ्वी पर तबाही मच सकती है। इस दमक के बाद घनघोर अंधेरा छा सकता है और भयंकर अव्यवस्था फैल सकती है।

द सन की रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों को डर है कि सूर्य से इतनी विशाल मात्रा में ऊर्जा के निकलने से विद्युत ग्रिड व संचार व्यवस्था ठप्प हो सकती है, वायुयान भूमि पर गिर सकते हैं और इंटरनेट व्यवस्था पूरी तरह बंद हो सकती है। गौरतलब है कि इस तरह की घटना 100 सालों में सिर्फ एक बार ही होती है।

ब्रिटेन में इलेक्ट्रिक इंफ्रास्ट्रचर सिक्युरिटी काउंसिल की तरफ से आयोजित एक सम्मेलन के दौरान इस विषय पर चर्चा की गई। इस दौरान ब्रिटेन के रक्षा सचिव लायम फाक्स ने विशेषज्ञों को चेतावनी दी कि अगर वर्तमान युग में ऐसा विस्फोट होता है तो इससे अपूरणीय क्षति होगी। इसमें यह कहा गया कि 2013 तक सूर्य अपने चक्र की एक नाजुक स्थिति में पहुंच जाएगा। इसके वातावरण में चुंबकीय ऊर्जा की तरंगे विकिरण की आंधी को जन्म दे सकती हैं जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा की लहरें उत्पन्न होंगी।

फाक्स ने वैज्ञानिकों से कहा कि वे इस आनेवाली तबाही को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाएं और इसके लिए रणनीतियां बनाएं।

Thursday, September 16, 2010

Benefits Of Single Women

Being single is the best part of my life!A well known line amongst many of the 21st century women.

When you are single there are many advantages that you can enjoy from. Many women of today are career oriented and they don't have the time to stay in a relationship. They prefer to remain single as they have no extra worries. Staying in a relationship for these women become a burden to their life.

So here are a few advantages of being a single woman-
1.You can go out and have a late night and there will be no one to question you when you get back home.

2.When you watch an emotional movie with your friends, you can sob and there will be no one to laugh at you.

3.You can have the remote all to yourself to watch your favourite serial. You don't have to worry about the channel being changed to a soccer game or cricket.

4.When you are a single woman, you can have all the time in the world to yourself. You can do the things that you love with your girl pals that boys would hate to do.

5.The best thing about being a single woman is that when you get up in the morning, you don't have to worry about how you look.

6.There is always time for friends when you are a single woman. Many women who are single say that their friends remain with them for longer time.

7.You don't have to go in for regular bikini waxes. You can do it when ever you want to and feel like.

8.When it comes to your career, women who are single have more opportunities. If you get a promotion at your work place to go to a different country, you will have no worries of whom you will leave behind.

For those of you single women, life can be so beneficial. Staying single always has more plus points than being in a relationship.

Sunday, September 5, 2010

अ‌र्द्धरात्रि में आए माखनचोर

श्रीमद्भगवद्गीताके माध्यम से जीवन का रहस्य बताने वाले जगद्गुरु श्रीकृष्ण के बारे में ज्योतिषियों की मान्यता है कि उनका जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद मास के कृष्णपदकी अर्धरात्रिव्यापिनीअष्टमी में बुधवार को वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति के अन्तर्गत रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय वृष लग्न में हुआ था। इसीलिये प्रत्येक वर्ष श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रतोत्सवश्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। किन्तु अनेक वर्षों के अंतराल में वह दुर्लभ संयोग बनता है, जब श्रीकृष्ण की जन्मतिथि, जन्मनक्षत्र, जन्मदिन तथा जन्मकालका शास्त्रों में वर्णित सम्पूर्ण योग उपलब्ध होता है।

ज्योतिषियों का मानना है कि जगद्गुरु श्रीकृष्ण के जन्मकालीनवार, तिथि, नक्षत्र के संयोग से युक्त जन्माष्टमी श्रीकृष्ण-जयंती कहलाती है।

[आज है वह सुयोग] ज्योतिष के अनुसार, आज यानी बुधवार की अ‌र्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण की जन्मतिथि-भाद्रपद कृष्ण अष्टमी का उनके जन्मदिन-बुधवार के साथ उनके जन्मनक्षत्र-रोहिणी की उपस्थिति में संयोग हो रहा है। भारतीय पंचांग में कोई भी वार सूर्योदय से सूर्योदय तक प्रभावी माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, आज सूर्योदय से प्रारंभ हुआ बुधवार सम्पूर्ण दिन-रात रहकर कल सूर्योदय होने तक चलेगा।

बुधवार की मध्यरात्रि में भाद्रपद कृष्णाष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने से आज श्रीकृष्ण-जयंती के योग में सामान्य गृहस्थ व्रत रखकर श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाते हैं।

[श्रीकृष्ण-जयंती का माहात्म्य]

गौतमीतंत्रमें श्रीकृष्ण-जयंती के व्रत की महिमा बताई गई है- अ‌र्द्धरात्रि के समय यदि अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के संयुक्त हो जाए, तो उस दिन किया गया जन्माष्टमी का व्रत करोडों यज्ञों का फल देता है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और बुधवार के साथ हो, तो वह श्रीकृष्ण-जयंती के नाम से विख्यात होती है। वायुपुराणमें लिखा है, जो व्यक्ति विधि-विधान से श्रीकृष्ण-जयंती के दिन व्रत और उत्सव करता है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

विष्णुधर्मोत्तरपुराण एवं विष्णुरहस्यनामक ग्रन्थ में भी श्रीकृष्ण-जयंती के व्रत की बडी प्रशंसा की गई है। धर्मसिन्धुएवं निर्णयसिन्धुमें श्रीकृष्ण-जयंती के दिन को जन्माष्टमी-व्रत के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

[वैष्णवों के पृथक नियम]

वैष्णव अपने संप्रदाय के नियमों के अनुसार श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं। जो वैष्णव जिस सम्प्रदाय के गुरु से दीक्षा लेता है, उसे उसी सम्प्रदाय के सिद्धांतों के अनुरूप व्रत-पर्व मनाना होता है। इस वर्ष निम्बार्कसम्प्रदाय, रामानुज सम्प्रदाय तथा पुष्टिमार्गीयवैष्णवों सहित कुछ अन्य संप्रदायों के वैष्णवजनकल गुरुवार 2सितम्बर को जन्माष्टमी मनाएंगे।

Tuesday, June 1, 2010

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Friday, May 21, 2010

केदारनाथ नाथ के पंच केदार

उत्तरांचलमें चार ऐसे प्रमुख धाम यानी तीर्थस्थलहैं, जिनके दर्शनार्थ भक्तों की भारी भीड उमडती है। इनके नाम हैं- केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री।वैसे तो केदारनाथ धाम के कपाट 18मई से और बद्रीनाथ के कपाट 19मई से खुल रहे हैं, लेकिन इनके लिए दूर-दराज से आने वाले तीर्थयात्रियों की आधिकारिक चार धाम यात्रा 16मई से ही आरंभ हो रही है। इसका मतलब यह है कि केदारनाथ के कपाट खुलने के शुभ अवसर पर बाहर हजारों की तादाद में दर्शनार्थी पहुंच चुके होंगे।

आमतौर पर गंगोत्री और यमुनोत्रीके बाद श्रद्धालु केदारनाथ की यात्रा करते हैं। उत्तरांचल के रुद्रप्रयागजिले में है केदारनाथ। प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य, आस्था और भक्ति का संगम है केदारनाथ धाम। यहां पहुंचने के लिए आपको पहाडों की श्रृंखला के अद्भुत नजारों के बीच सर्पीलीसडक से गौरीकुंडतक पहुंचना होगा। यहां से आगे 14किमी. की यात्रा आपको पैदल ही करनी होगी। इस यात्रा के बाद जब आप केदारनाथ के पास पहुंचते हैं, तो पहाडों से उतरती मंदाकिनी का जल दूध के समान सफेद दिखाई पडता है। चौराबारीहिमनद के कुंड से निकली है मंदाकिनी नदी। केदारनाथ पर्वत शिखर के समीप है केदारनाथ मंदिर, जो समुद्र तल से 3562मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह कत्यूरीशैली में बना दर्शनीय मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार जगत गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में सदाशिवप्रतिष्ठित हैं। पांच रूपों में विराजमान होने के कारण शिवलिंगपंच केदार कहलाते हैं।

[केदारनाथ ज्योतिर्लिग]भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है केदारनाथ। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, केदारनाथ में शिवलिंग,तुंगनाथ में बाहु, रुद्रनाथमें मुख, मध्य महेश्वर में नाभि, कल्पेश्वरमें जटा के रूप में शिव की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की जीवंत मूर्ति स्थापित की गई है। हर साल मई से अक्टूबर के बीच केदारनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यहां नागनाथ शरदोत्सव, जोशीमठशरदोत्सव, शिवरात्रि गोपेश्वरनंदा देवी नौटी,नवमी जसोलीहरियाली, रूपकुंडमहोत्सव बेदनीबुग्याल,कृष्णा मेला जोशी मठ, गौचरमेला, अनुसूयादेवी आदि कई मेले आयोजित होते हैं। केदारनाथ के निकट ही गांधी सरोवर व बासुकी ताल है।

[रुद्रनाथ गुहा मंदिर] मंदाकिनी और अलकनंदानदी के बीचों-बीच स्थित है रुद्रनाथगुहा मंदिर। यहां गुहा को एक भित्ति बनाकर बंद कर दिया गया है। आंतरिक भाग में शिवलिंगहै, जिस पर जल की बूंदेंटपकती रहती हैं।

[कल्पेश्वर] केदारखंडपुराण में उल्लेख है कि कल्पस्थलमें दुर्वासाऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। कल्पेश्वरकल्पगंगाघाटी में स्थित है। कल्पगंगाका प्राचीन नाम हिरण्यवतीथा। दायें तट पर दूरबसाभूमि है, जहां ध्यान बद्री का मंदिर है। विशाल कल्पेश्वरचट्टान के पाद में गुहा है, जिसके गर्भ में स्वयंभू शिवलिंगविराजमान हैं। [मध्य महेश्वर] स्थापत्य की दृष्टि से यह पंच केदारोंमें सर्वाधिक आकर्षक है। मंदिर का शिखर स्वर्ण कलश से अलंकृत है। पृष्ठभाग में हर गौरी की प्रतिमाएं हैं। छोटे मंदिर में पार्वती की मूर्ति है। मंदिर के मध्य भाग में नाभि क्षेत्र के समान एक लिंग है। मान्यता है कि मध्य महेश्वर लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य स्वर्ग में स्थान पा लेता है। मध्य महेश्वर से 2किमी. मखमली घास और फूलों से भरपूर ढालों को पार कर बूढा मध्य महेश्वर है, जहां क्षेत्रपालदेवता मंदिर है। इसमें धातु निर्मित मूर्ति स्थापित है। इससे आगे ताम्र पात्र में प्राचीन मुद्राएं रखी हैं। गुप्त काशी से 7किमी. दूर काली मठ में काली मां का गोलाकार मंदिर है।

[तुंगनाथ] चंद्रशिलाशिखर (3680 मीटर) के नीचे तुंगनाथ विद्यमान है। तराशे प्रस्तरोंसे निर्मित तुंगनाथ मंदिर लगभग ग्यारह मीटर ऊंचा है। इसके शिखर पर 1.6मीटर ऊंचा स्वर्ण कलश है। सभा मण्डप के ऊपर गजसिंहहै। यह काले रंग के पिण्डाकारशिवलिंगसे सुशोभित है। इसके अलावा, यहां स्वर्ण और रजत से बनी पांच प्रतिमाएं हैं। तुंगनाथ से दस किमी. दूरी पर देवरिया ताल है। इसके जल में बद्रीनाथ शिखर मन मोह लेता है।

Wednesday, May 5, 2010

सृजन और विनाश

प्रभु ने सृष्टि की रचना ही नहीं की उसका संचालन भी कर रहा है। जितनी अद्भुत रचना है उतना ही अद्वितीय संचालन भी है। उसने वायु बनाई और जल उत्पन्न किया। जल के संरक्षण के लिए धरती बनाई और उस धरती को ही जल पर टिका दिया। पानी के सिंचन से वनस्पतियां हरी भरी हुई, विकसित हुई।

वायु-जल-अग्नि ये तीनों परस्पर विरोधी तत्व हैं किंतु परमात्मा ने इन तत्वों को एक साथ रखकर उनमें सामंजस्य स्थापित कर दिया। इसी तरह सृष्टि, जो इन मूल तत्वों पर टिकी है, के संचालन में भी विलक्षण प्रकट होती है। सबसे बडी विशिष्टता है कि सृष्टि दो धुर विरोधी तत्वों से संचालित हो रही है। एक ओर सृजन हो रहा है दूसरी ओर जो सृजित हो चुका है उसका विनाश हो रहा है। यह सृजन और विनाश की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। सृष्टि में उपस्थित प्रत्येक रचना की एक निश्चित आयु है जिसके उपरांत उसे नष्ट होना है। &द्यह्ल;क्चक्त्र&द्दह्ल;&ड्डद्वश्च;ठ्ठढ्डह्यश्च;&ड्डद्वश्च;ठ्ठढ्डह्यश्च; सृजन और विनाश के माध्यम से परमात्मा मनुष्य को पल-पल संदेश दे रहा है कि मनुष्य विनाश के बारे में भूल न जाए। यदि मनुष्य की स्मृति में क्षणभंगुरता रहती है तो कदाचित् वह अहम् से विरत रहेगा, दुष्कर्मो से विमुख रहेगा और प्रभु की ओर उन्मुख होगा। जिसकी शरण में है उसके जीवन का उद्धार है। मृत्यु निश्चित है किंतु पता नहीं कि उसकी आयु कितनी है। आयु कई वर्षो की, महीनों की, पलों की अथवा पल भर की भी हो सकती है। अत:मनुष्य की वस्तुत:आयु उसी एक पल की है जिसे वह जी रहा है। सृष्टि में विनाश की चल रही प्रक्रिया यही बता रही है। कौन सा पत्ता शाख से अलग होकर कब गिर पडेगा कहा नहीं जा सकता। किंतु यह विनाश हताशा और निराशा की ओर ले जाने वाला नहीं है। विनाश है तो सृजन भी हो रहा है। इससे परमात्मा में विश्वास दृढ होता है और सत् मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। मृत्यु के भय में जीवन को जीना असंभव है, किंतु मृत्यु के सत्य को जब स्वीकार कर लिया जाए और परमात्मा के न्याय पर विश्वास को टिकाते हुए उसकी शरण में जाकर स्व का समर्पण कर दिया जाए, तो जीवन परमात्मा के रस से सराबोर हो जाता है और जिसे परमात्मा का रस मिल जाए उसके आनंद की सीमा नहीं रहती। बाकी सभी रस फीके लगने लगते हैं।

Wednesday, April 28, 2010

विवाह

प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था।

हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।

Wednesday, April 21, 2010

..जब धरा गोपिका का रूप

वृंदावन में यमुना किनारे वंशीवट क्षेत्र में है गोपीश्वरमहादेव मंदिर। यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है। यहां भगवान महादेव पार्वती, गणेश, नंदीश्वरके साथ विराजमान हैं। कथा है कि कृष्ण-राधा और अन्य गोपिकाओं की रासलीला देखने के लिए भगवान महादेव अपनी समाधि भंग कर कैलाश से सीधे वृंदावन चले आए। वहां गोपियों ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि यहां भगवान श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य पुरुष का प्रवेश वर्जित है। इस पर शंकर ने गोपियों को ही कुछ उपाय बताने के लिए कहा।


ललिता सखी की सलाह पर महादेव गोपी रूप धारण कर लीला में प्रवेश कर गए। उन्होंने जैसे ही नृत्य करना शुरू किया, उनके सिर से साडी सरक गई। श्रीकृष्ण ने गोपीरूपधारी महादेव को पहचान लिया। मुस्कुराते हुए उन्हें कहा, आइए, महाराज गोपीश्वर!आपका स्वागत है। यह देख राधा क्रोधित होकर रोने लगीं। कहते हैं कि उनके अश्रुओं से वहां मानसरोवर बन गया। दरअसल, वे कृष्ण के असंख्य गोपियों के सामने व्रज से बाहर की एक गोपी को गोपीश्वरसंबोधित करने पर नाराज हो गई थीं। जब उन्हें असलियत पता चली, तो वे शिवजी पर अत्यंत प्रसन्न हुईं। राधा-कृष्ण ने उनसे वरदान मांगने को कहा। शंकरजीने कहा कि आप दोनों के चरण कमलों में हमारा सदैव वृंदावन वास बना रहे। इस पर श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर यमुना के निकट वंशीवट के सम्मुख भगवान शंकर को श्री गोपीश्वरमहादेव के रूप में विराजितकर दिया। साथ ही, उनसे यह कहा कि किसी भी व्यक्ति की व्रज-वृंदावन यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब वह गोपीश्वरमहादेव के दर्शन कर लेगा।

गोपी रूप में श्रृंगार

कालांतर में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभने शांडिल्य ऋषि के सहयोग से वृंदावन में गोपीश्वरमहादेव मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्ठा कराई। समूचे विश्व में यही एकमात्र मंदिर है, जहां विराजे शिवलिंगका श्रृंगार एक नारी की तरह होता है। यह इस बात का प्रतीक है कि यदि कोई जीव परमेश्वर से मिलना चाहे, तो उसे नारी सुलभ समर्पण का भाव अंतस में जाग्रत करना होगा। यहां प्रतिदिन शिवलिंगकी जल, दूध, दही, पंचामृत से रुद्राभिषेक और पूजा-अर्चना होती है। संध्याकाल में नित्य शिवलिंगका गोपी रूप में श्रृंगार होता है। इस मंदिर में पार्वती, गणेश और नंदी आदि गर्भ मंदिर के बाहर विराजमान हैं।

सामान्यतया भगवान शिव के दो रूपों का दर्शन होता है-दिगंबर और बाघंबर वेश में। यहां लहंगा, ओढनी, ब्लाउज, नथ, कर्णफूल, टीका आदि पहन कर और काजल, बिंदी, लाली आदि लगाए गोपीश्वरमहादेव के दर्शन होते हैं। इस वेश में भगवान शिव की छवि अत्यंत मनमोहकलगती है। चैतन्य महाप्रभु वृंदावन के गोपीश्वरमहोदवके दर्शन कर बहुत अधिक भाव-विभोर हो गए थे। कहते है कि उन्हें अप्रकट रूप से अलौकिक दिव्य महारासलीला के दर्शन हुए थे। श्रीपादसनातन गोस्वामी नित्य प्रति गोपीश्वरमहादेव मंदिर का दर्शन करते थे। यहां प्रतिदिन कई अनुष्ठान चलते रहते हैं।

विवाह और पुत्र प्राप्ति के बाद महिलाएं सज-धज कर यहां भोले बाबा के दर्शन के लिए आती हैं। महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहां देश-विदेश के असंख्य भक्त-श्रद्धालुओं का सैलाब उमड पडता है।

Tuesday, April 13, 2010

बैसाखी पर हरिद्वार में लाखों ने लगाई डुबकी

देहरादून। हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ के अवसर पर मंगलवार को बैसाखी के दिन 40 लाख से भी अधिक लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई।

अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बैसाखी के अवसर पर आज सुबह से ही हरिद्वार के विभिन्न घाटों पर लोगों ने स्नान शुरू कर दिया था, जबकि हरकीपौड़ी पर भारी संख्या में लोग स्नान करते हुए देखे गए। महाकुंभ के दौरान आज बैसाखी और कल शाही स्नान को देखते हुए भारी संख्या में लोगों का समूह यहां पहुंचा है।

सूत्रों के अनुसार कल 14 अप्रैल को स्नानार्थियों की संख्या एक करोड़ पार करने की पूरी संभावना है। पूरे मेला के करीब 130 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस समय लोगों की चारों तरफ भारी भीड़ देखी जा रही है।

ऋषिकेश से लेकर ज्वालापुर तक के बीच बनाए गए विभिन्न घाटों पर लोगों को आज भी स्नान करते हुए देखा गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए आज विभिन्न घाटों पर सुरक्षाकर्मियों को विशेष रूप से तैनात किया गया था। किसी को भी घाटों के पास कपडे़ बदलने या कपड़ों को साफ करने की इजाजत नहीं दी गई।

राकेट प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर बनने को तैयार भारत

बेंगलूर। अंतरिक्ष में नया मुकाम हासिल करने के लिए भारत ने अपने महत्वाकांक्षी राकेट मिशन की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस जीएसएलवी-डी3 राकेट के गुरुवार शाम को होने वाले प्रक्षेपण को लेकर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल पर उत्सुकता तेज हो रही है। यह पहला मौका है जब भारत का कोई राकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस होकर अंतरिक्ष में जाएगा। इस अभियान की कामयाबी के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो जाएगा, जिन्हें जटिल क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] के प्रवक्ता एस. सतीश ने मंगलवार को कहा, 'गुरुवार शाम चार बजकर 27 मिनट पर जीएसएलवी-डी3 राकेट अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा। राकेट के प्रक्षेपण के लिए 29 घंटे की उलटी गिनती बुधवार को दिन में 11 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी।' उन्होंने कहा कि जीएसएलवी की सफल उड़ान भारत को राकेट प्रक्षेपण के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देगी।

उल्लेखनीय है कि अब तक भारत अपने स्वदेशी राकेट में रूसी क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल कर रहा था। 18 साल पहले अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण की तकनीक देने से इन्कार कर दिया था। इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन के मुताबिक स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक के शोध और विकास के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा 18 साल से की जा रही अथक मेहनत के कारण ही जीएसएलवी की यह उड़ान संभव होने जा रही है।

जीएसएलवी [जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल] राकेट इस उड़ान के दौरान प्रायोगिक संचार उपग्रह जीसेट-4 को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इस उपग्रह की उम्र सात साल तय की गई है। इस उपग्रह के जरिए इसरो ने इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम और बस मैनेजमेंट यूनिट सरीखी कुछ नई तकनीकों के परीक्षण का लक्ष्य तय किया है।

Wednesday, April 7, 2010

आरती क्यों और कैसे?

पूजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाडे, घडियाल आदि भी बजाना चाहिए।

एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या [जैसे 3,5या 7]में बत्तियां जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारतीकहलाती है। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।

कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।

यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।

जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।

नारियल- आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।

सोना- ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है।

यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडने का माध्यम भी माना जाता है।

तांबे का पैसा- तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।

सप्तनदियोंका जल-गंगा, गोदावरी,यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरीऔर नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज्यादातर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी। सुपारी और पान- यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देते हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ जाती है। पान की बेल को नागबेलभी कहते हैं।

नागबेलको भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडने वाली कडी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।

तुलसी-आयुर्र्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।

हम साथ-साथ


नई दिल्ली में बृहस्पतिवार, 21 जनवरी को अपने आवास पर आयोजित समारोह के दौरान राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार विजेता बच्चों के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। इस दौरान पर कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूद थीं। बच्चों को उनकी बहादुरी के कारनामों के लिए शाबाशी दी गई।

कार्निवल की मस्ती


ब्राजील के रियो द जनेरियो में दुनिया के सबसे लोकप्रिय उत्सव ब्राजील कार्निवल का आयोजन किया जाता है। हर साल फरवरी में आयोजित होने वाले इस आयोजन में ब्राजील का लोकप्रिय नृत्य सांबा डांस और परेड को देखने दुनिया भर के सैलानी खिंचे चले आते हैं।

बिना मेकअप के हीरोइन

हाल ही में पूर्व मिस यूनिवर्स लारा दत्ता ने अपने ट्विटर अकाउंट में अपनी क्लोजअप पिक्चर पोस्ट की है। खास बात यह है कि लारा इसमें कंप्लीटली विदआउट मेकअप हैं। किसी भी हीरोइन के लिए यह बड़ी हिम्मत की बात है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी भारतीय अभिनेत्री ने आम लोगों के सामने खुद को बिना मेकअप के पेश किया हो। खुद को ज्यादा से ज्यादा सुंदर और जवान दिखाने की लालसा उन्हें ऐसा करने से रोकती है। लेकिन लारा जैसा जिगर सबके पास कहां। लारा ने तो एक सामान्य लड़की जैसी छवि वाली अपनी ओरिजनल फोटो, जिसे न तो किसी तकनीक से न ही डिजिटली बनाया गया है, जारी करके तहलका मचा दिया है।

किसी पब्लिक इवेंट में, फोटोग्राफरों से यह निवेदन किया जाता है कि हीरोइनों का फोटो उस वक्त न खींचें, जब वे खाना खा रही हों। डर यह होता है कि इससे वे फोटो में अच्छी नहीं लगेंगी। इसी डर के कारण आज तक कोई हीरोइन बिना मेकअप के कैमरे के सामने नहीं आई है। लारा ने ट्विटर पर यह पिक्चर डालकर एक नए ट्रेंड को परिभाषित कर दिया है। लारा ने ट्विटर पर फोटो के साथ लिखा है - उन लोगों के लिए, जो बिना मेकअप पिक चाहते हैं।

ट्विटर जैसी तमाम नेटवर्रि्कग साइट्स पर पॉपुलर भारतीय हीरोइनें जैसे, प्रियंका चोपड़ा और मल्लिका शेरावत अपनी फोटो भेजते वक्त काफी केयरफुल रहती हैं।

मुंबई के मशहूर फोटो जर्नलिस्ट योगेन शाह कहते हैं, 'दरअसल, बॉलीवुड की हीरोइनों को नेचुरल लुक में पकड़ना बहुत कठिन है। आप ऐसा फोटो नहीं ले सकते। अगर किसी अवसर पर वे खुश नहीं हैं या वे अपने कम मेकअप में हैं, तो वे फोटोग्राफरों से फोटो न खींचने को कहती हैं। फोटोग्राफर भी अमूमन उनकी ब्यूटीफुल पब्लिक इमेज को खराब नहीं करना चाहते।'

लारा की इस हिम्मत को हम उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस ही कह सकते हैं। सेलिब्रिटी कॉस्मेटिक डेंटिस्ट डॉ. सुशांत उमरे शाहरुख खान के साथ काम कर चुके हैं और लारा दत्ता के साथ भी मिस यूनिवर्स के जमाने से जुड़े रहे हैं। वे कहते हैं, 'लारा हमेशा से ही कॉन्फिडेंट रही है। यहां तक कि जब लारा मिस यूनिवर्स बनी, इसके पहले वह जो भी थी, उस पर कंफर्टेबल थी। वह कहते हैं, अन्य मिस इंडियाज की तरह उसने मुझसे कभी नहीं कहा कि उसे कोई अच्छी स्माइल डिजाइन दें। वह सिर्फ टीथ ब्लीचिंग करके अपना नेचुरल लुक बढ़ाना चाहती थी। वह जैसी है, उसी में अच्छा फील करती है।

हां, हॉलीवुड में डैमी मूर ने जरूर अपने नेचुरल लुक को सार्वजनिक किया था, जिसमें उसका आगे का दांत गायब था।

Monday, April 5, 2010

हरियाली ओढे, सीढीनुमा खेतों से सजी, स्वास्थ्यव‌र्द्धक चीड व अन्य वृक्षों से आबाद पहाडियों के बीच मैदाननुमा खुली जगह पर चारों ओर भीड लगी है। सुंदर, सजीली, भोली, लजीली, कोमल पहाडी युवतियां मेले में पारंपरिक सलवार कुर्ता, घाघरा पहने सर पर चटकीले रंगबिरंगे ढाठू बांधे, मेले में लगी दुकानों पर खिलखिलाते हुए मंडरा रही हैं। उधर मैदान के हर ओर हजारों गांववासी मनपसंद परिधानों में जमे हुए प्रतीक्षा कर रहे हैं। गप्पे लड रही हैं, आंखें मटक रही हैं। पुराने संबंधियों व मित्रों से मुलाकातों के बीच अपनी पसंद का साथी खोजा जा रहा है। कहीं रोमांस भी अंकुरित हो रहा है। पहाडी नाटी के साथ साथ रीमिक्स भी बज रहा है। इसी सैलाब में बिखरे दूर-दूर से आए सैलानी भी खुद को माहौल के अनुरूप ढाल रहे हैं।

मैदान के आसपास रोमांच की सुगबुगाहट है, दर्शकों की बातचीत के बीच प्रतिस्पद्र्धा जवान हो रही है। मैदान के एक ओर से ढोल-नगाडे, शहनाई, रणसिंघा, करताल, मृदंग, दमामठू व तुरही की जोश बढाती रणभेरी सी आवाजों की बीच तलवारें, भाले, खुखरिया, डांगरे, लाठियां, बंदूकें व तीर-कमान लहराते हुए एक योद्धा दल युद्धस्थल की ओर बढ रहा है। मैदान के दूसरे छोर से आ रहा दूसरा दल भी जोश-खरोश के साथ अपने जौहर दिखाने को बेताब है। दोनों दलों के सदस्य व समर्थक कंधे उचकाकर एक-दूसरे के विरोधी लोकगीत गा रहे हैं। माहौल में उत्सव घुल गया है ठोडा के लिए सब तैयार हैं।

दुनिया में तीरंदाजी की कितनी ही शैलियां हैं मगर हिमाचल व उत्तराखंड की पर्वतावलियों के बाशिंदों की यह तीरकमानी अद्भुत व निराली है। माना जाता है कि कौरवों व पांडवों की यादें इन पर्वतीय क्षेत्रों में अभी तक रची-बसी हैं। ठोडा योद्धाओं में एक दल पाशी (पाश्ड, पाठा, पाठडे) यानी पांच पांडवों का है और दूसरा शाठी (शाठड, शाठा, शठडे) यानी कौरवों का। जनश्रुतियों के अनुसार कौरव साठ थे सो शाठड (साठ) कहे जाते हैं। कभी कबीलों में रह चुके यह दल अपने को कौरवों व पांडवों के समर्थन में लडे योद्धाओं का वशंज मानते हैं।

पहले ठोडा हो जाए

इसके लिए धनुर्धारी कमर से नीचे मोटे कपडे, बोरी या ऊन का घेरेदार वस्त्र लपेटते हैं या फिर चूडीदार वस्त्र (सूथन) पहनते हैं। मोटे-मोटे बूट, कहीं-कहीं भैंस के चमडे से बनाए गए घुटनों तक के जूते साधारण कमीज व जैकेट धारण होता है। पहाडी संस्कृति के विद्वान बताते हैं कि ठोडा का धणु (धनुष) डेढ से दो मीटर लंबा होता है और चांबा नामक एक विशेष लकडी से बनाया जाता है। शरी (तीर) धनुष के अनुपात में एक से डेढ मीटर का होता है और स्थानीय बांस की बीच से खोखली लकडी नरगली या फिरल का बनाया जाता है, जिसके एक तरफ खुले मुंह में अनुमानत दस बारह सेंटीमीटर की लकडी का एक टुकडा फिक्स किया जाता है जो एक तरफ से चपटा व दूसरी तरफ से पतला व तीखा होता है और नरगली के छेद से गुजारा जाता है। चपटा जानबूझ कर रखा जाता है ताकि प्रतिद्वंद्वी की टांग पर प्रहार के समय लगने पर ज्यादा चोट न पहुंचे। दिलचस्प यह है कि इस लकडी को ही ठोडा कहते हैं। इस खेल युद्ध में घुटने से नीचे तीर सफलता से लगने पर खिलाडी को विशेष अंक दिए जाते हैं। वहीं घुटने से ऊपर वार न करने का सख्त नियम है। जो करता है उसे फाउल करार दिया जाता है। ठोडा में अपने चुने हुए प्रतिद्वंद्वी की पिंडली पर निशाना साधा जाता है, दूसरे प्रतिद्वंद्वी पर नहीं। जिस व्यक्ति पर वार किया जाता है वह हाथ में डांगरा लिए नृत्य करते हुए वार को बेकार करने का प्रयास करता है। बच जाता है तो वह प्रतिद्वंद्वी का मजाक उडाता है, मसखरी करता है। इस तरह खेल-खेल में मनोरंजन हो जाता है और ठोडा खेलने वालों का जोश भी बरकरार रहता है। फिर दूसरा खिलाडी निशाना साधता है। लगातार जोश का माहौल बनाने वाले लोक संगीत के साथ-साथ खेल यूं ही आगे बढता रहता है। कई बार खेलने वाले जख्मी हो जाते हैं मगर ठोडा के मैदान में कोई पीठ नहीं दिखाता। खेल की समयावधि सूर्य डूबने तक निश्चित होती है। शाम उतरती है तो थकावट चढती है और रात मनोरंजन चाहती है। स्वादिष्ट स्थानीय खाद्यों के साथ मांस, शराब पेश की जाती है और नाच-गाना होता है। अगले दिन फिर ठोडा आयोजित किया जाता है।

पाशी और शाठी दोनों की परंपरागत खुन्नस शाश्वत मानी जाती है मगर खुशी गम और जरूरत के मौसम में वे मिलते-जुलते हैं और एक दूसरे के काम आते हैं। उनमें आपस में रिश्तेदारियां भी हैं। जब बिशु (बैसाख का पहला दिन) आता है तो पुरानी नफरत थोडी सी जवान होती है, गांव-गांव में युद्ध की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिसे किसी वर्ष शाठी आयोजित करते हैं तो कभी पाशी। कबीले का मुखिया बिशु आयोजन के दिन प्रात: कुलदेवता की पूजा करता है और अपने सहयोगियों के साथ ठोडा खेलने आ रहे लोगों के आतिथ्य और अपनी जीत के लिए मंत्रणा करता है। युद्ध प्रशिक्षण का अवशेष माने जाने वाले ठोडा में खेल, नृत्य व नाट्य का सम्मिश्रण है। धनुष बाजी का खेल, वाद्यों की झंकार में नृत्यमय हो उठता हैं। खिलाडी व नाट्य वीर रस में डूबे इसलिए होते हैं क्योंकि यह महाभारत के महायुद्ध से प्रेरित है। भारतीय संस्कृति के मातम के मौसम में पहाड वासियों ने लुप्त हो रही सांस्कृतिक परंपरा को जैसे-तैसे करके जीवित रखा है। कौशल, व्यायाम व मनोरंजन के पर्याय ठोडा को हमारी लोक संस्कृति के कितने ही उत्सवों में जगह मिलती है जहां पर्यटक भी होते हैं और स्थानीय लोग भी।

कहां, कब व कैसे

ठोडा आम तौर पर हर साल बैसाखी के दो दिनों- 13 व 14 अप्रैल को होता है। शिमला जिले के ठियोग डिवीजन, नारकंडा ब्लॉक, चौपाल डिवीजन, सिरमौर व सोलन में कहीं भी इसका आनंद लिया जा सकता है। नारकंडा, सिरमौर व सोलन- इन सभी स्थानों पर ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था है।



दिल्ली से उड़ेगा विश्व का सबसे बड़ा विमान

बहुत जल्द इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से विश्व के सबसे बडे़ एयरक्राफ्ट ए-380 का व्यावसायिक संचालन भी संभव हो सकेगा। नव निर्माणाधीन टर्मिनल टी-थ्री के खास हिस्से को कुछ इस तरह तैयार किया जा रहा है, जिससे आईजीआई एयरपोर्ट से एयरक्राफ्ट ए-380 का संचालन संभव हो सके। इस खास हिस्से में एयरक्राफ्ट ए-380 के अनुरूप तीन पेयर वाले दो मंजिला एयरोब्रिज सहित नौ सौ यात्रियों से अधिक क्षमता वाला लाउंज तैयार किया जा रहा है।

दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड का दावा है कि टर्मिनल थ्री से ए-380 का संचालन शुरू होने के बाद आईजीआई विश्व के उन चुनिंदा एयरपोर्ट में शामिल हो जाएगा, जहां से ए-380 का संचालन संभव है। डायल के मुताबिक ए-380 दो मंजिला विमान है। इसमें यात्रियों के प्रवेश एवं निकास के लिए दोनों मंजिलों में अलग अलग द्वार हैं। इन सभी द्वारों से यात्रियों को विमान में भेजने के लिए नव निर्माणाधीन टर्मिनल में नौ विशेष एयरोब्रिज बनाए जा रहे हैं। इनमें से छह एयरोब्रिज टर्मिनल के अंतरराष्ट्रीय भाग एवं तीन एयरोब्रिज टर्मिनल के घरेलू भाग की ओर तैयार किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त एयर साइड में तीन रिमोट स्टैंड तैयार किए जा रहे हैं, जहां पर एयरक्राफ्ट ए-380 को खड़ा किया जा सके। एयरक्राफ्ट से यात्रियों के शीघ्र आगमन एवं निकास के लिए टर्मिनल के एयरोब्रिज में एक साथ तीन गेट बनाए जा रहे हैं। यह गेट विमान के पहली व दूसरी मंजिल में एक साथ लगाए जा सकेंगे। वहीं लगभग 80 मीटर चौड़े एवं 73 मीटर लंबे इस विमान को खड़ा करने के लिए अधिक चौड़े पार्किंग स्टैंड तैयार किए जा रहे हैं। इस विमान की लैंडिंग के बाद अत्यधिक क्षमता वाले ट्रैक्सी वे की जरूरत को देखते हुए आईजीआई एयरपोर्ट पर 15 किलोमीटर लंबा एक नया ट्रैक्सी वे तैयार किया गया है। डायल के अधिकारियों के मुताबिक विश्व के सबसे बडे एयरक्राफ्ट ए-380 में एक साथ करीब साढे आठ सौ यात्री सवार हो सकते हैं। एक विमान में एक साथ इतने अधिक यात्रियों की संख्या को देखते हुए नव निर्माणाधीन टर्मिनल में एक विशेष लांज तैयार किया जा रहा है, जिसमें एक साथ नौ सौ यात्री बैठ सकें। वहीं इस विमान से आने वाले यात्रियों को अपने सामान के लिए ज्यादा इंतजार न करना पडे़, इसके लिए टर्मिनल थ्री में अत्यधिक क्षमता वाली बारह बैगेज बेल्ट लगाई जा रही हैं।

Friday, April 2, 2010

सेक्स कई रोगों की दवा है सेक्स : कई प्रॉब्लम्स का अचूक उपाय

आप शीर्षक पढ़कर चौंक गए होंगे कि भला सेक्स रोगों की दवा हो सकता है? इसमें चौंकने की कोई बात नहीं है। डॉक्टरों वैज्ञानिकों ने शोध करके यह पता लगाया है कि सेक्स अनेक रोगों की दवा भी है। जहाँ जीवन में सेक्स एक-दूजे के बीच सुख, आनंद, अपनापान लाता है, वहीं एक-दूजे की हेल्थ ब्यूटी को भी बनाए रखता है।

सेक्स से शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोन उत्पन्न होते हैं, जो शरीर के स्वास्थ्य एवं सौंदर्य को बनाए रखने में सहायक होते हैं। सेक्स से शरीर में उत्पन्न एस्ट्रोजन हार्मोन 'ऑस्टियोपोरोसिस' नामक बीमारी नहीं होने देता है। सेक्स से एंडोर्फिन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्किन सुंदर, चिकनी चमकदार बनती है। एस्ट्रोजन हार्मोन शरीर के लिए एक चमत्कार है, जो एक अनोखे सुख की अनुभूति कराता है।

सफल नियमित सेक्स करने वाले मैरिड कपल अधिक स्वस्थ देखे गए हैं। उनका सौंदर्य भी लंबी उम्र तक बना रहता है। उनमें उत्तेजना, उत्साह, उमंग और आत्मविश्वास भी अधिक होता है। सेक्स से परहेज करने वाले शर्म, संकोच, अपराधबोध तनाव से पीड़ित रहते हैं।

दिमाग को तरोताजा रखने तनाव को दूर करने के लिए नियमित सेक्स एक अच्छा उपाय है। सेक्स के समय फेरोमोंस नामक रसायन शरीर में एक प्रकार की गंध उत्पन्न करता है, जिसे आप सेक्स परफ्यूम भी कह सकते हैं। यह सेक्स परफ्यूम दिल दिमाग को असाधारण सुख शांति देता है। सेक्स हृदय रोग, मानसिक तनाव, रक्तचाप और दिल के दौरे से दूर रखता है। सेक्स से दूर भागने वाले इन रोगों से अधिक पीड़ित रहते हैं।

सेक्स व्यायाम भी है :
सेक्स एक प्रकार का व्यायाम भी है। इसके लिए खास किस्म के सूट, शू या महँगी एक्सरसाइज सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। जरूरत होती है बस शयनकक्ष का दरवाजा बंद करने की। सेक्स व्यायाम शरीर की मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करता है और शरीर को लचीला बनाता है। एक बार की संभोग क्रिया, किसी थका देने वाले व्यायाम या तैराकी के 10-20 चक्करों से अधिक असरदार होती है। सेक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार मोटापा दूर करने के लिए सेक्स काफी सहायक सिद्ध होता है।

सेक्स से शारीरिक ऊर्जा खर्च होती है, जिससे कि चर्बी घटती है। एक बार की संभोग क्रिया में 500 से 1000 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। सेक्स के समय लिए गए चुंबन भी मोटापा दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स के समय लिए गए एक चुंबन से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह 390 बार चुंबन लेने से 1/2 किलो वजन घट सकता है।

Thursday, April 1, 2010

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