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Sunday, September 5, 2010

अ‌र्द्धरात्रि में आए माखनचोर

श्रीमद्भगवद्गीताके माध्यम से जीवन का रहस्य बताने वाले जगद्गुरु श्रीकृष्ण के बारे में ज्योतिषियों की मान्यता है कि उनका जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद मास के कृष्णपदकी अर्धरात्रिव्यापिनीअष्टमी में बुधवार को वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति के अन्तर्गत रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय वृष लग्न में हुआ था। इसीलिये प्रत्येक वर्ष श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रतोत्सवश्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। किन्तु अनेक वर्षों के अंतराल में वह दुर्लभ संयोग बनता है, जब श्रीकृष्ण की जन्मतिथि, जन्मनक्षत्र, जन्मदिन तथा जन्मकालका शास्त्रों में वर्णित सम्पूर्ण योग उपलब्ध होता है।

ज्योतिषियों का मानना है कि जगद्गुरु श्रीकृष्ण के जन्मकालीनवार, तिथि, नक्षत्र के संयोग से युक्त जन्माष्टमी श्रीकृष्ण-जयंती कहलाती है।

[आज है वह सुयोग] ज्योतिष के अनुसार, आज यानी बुधवार की अ‌र्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण की जन्मतिथि-भाद्रपद कृष्ण अष्टमी का उनके जन्मदिन-बुधवार के साथ उनके जन्मनक्षत्र-रोहिणी की उपस्थिति में संयोग हो रहा है। भारतीय पंचांग में कोई भी वार सूर्योदय से सूर्योदय तक प्रभावी माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, आज सूर्योदय से प्रारंभ हुआ बुधवार सम्पूर्ण दिन-रात रहकर कल सूर्योदय होने तक चलेगा।

बुधवार की मध्यरात्रि में भाद्रपद कृष्णाष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने से आज श्रीकृष्ण-जयंती के योग में सामान्य गृहस्थ व्रत रखकर श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाते हैं।

[श्रीकृष्ण-जयंती का माहात्म्य]

गौतमीतंत्रमें श्रीकृष्ण-जयंती के व्रत की महिमा बताई गई है- अ‌र्द्धरात्रि के समय यदि अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के संयुक्त हो जाए, तो उस दिन किया गया जन्माष्टमी का व्रत करोडों यज्ञों का फल देता है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और बुधवार के साथ हो, तो वह श्रीकृष्ण-जयंती के नाम से विख्यात होती है। वायुपुराणमें लिखा है, जो व्यक्ति विधि-विधान से श्रीकृष्ण-जयंती के दिन व्रत और उत्सव करता है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

विष्णुधर्मोत्तरपुराण एवं विष्णुरहस्यनामक ग्रन्थ में भी श्रीकृष्ण-जयंती के व्रत की बडी प्रशंसा की गई है। धर्मसिन्धुएवं निर्णयसिन्धुमें श्रीकृष्ण-जयंती के दिन को जन्माष्टमी-व्रत के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

[वैष्णवों के पृथक नियम]

वैष्णव अपने संप्रदाय के नियमों के अनुसार श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं। जो वैष्णव जिस सम्प्रदाय के गुरु से दीक्षा लेता है, उसे उसी सम्प्रदाय के सिद्धांतों के अनुरूप व्रत-पर्व मनाना होता है। इस वर्ष निम्बार्कसम्प्रदाय, रामानुज सम्प्रदाय तथा पुष्टिमार्गीयवैष्णवों सहित कुछ अन्य संप्रदायों के वैष्णवजनकल गुरुवार 2सितम्बर को जन्माष्टमी मनाएंगे।

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