Search This Blog

Wednesday, April 28, 2010

विवाह

प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था।

हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।

Wednesday, April 21, 2010

..जब धरा गोपिका का रूप

वृंदावन में यमुना किनारे वंशीवट क्षेत्र में है गोपीश्वरमहादेव मंदिर। यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है। यहां भगवान महादेव पार्वती, गणेश, नंदीश्वरके साथ विराजमान हैं। कथा है कि कृष्ण-राधा और अन्य गोपिकाओं की रासलीला देखने के लिए भगवान महादेव अपनी समाधि भंग कर कैलाश से सीधे वृंदावन चले आए। वहां गोपियों ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि यहां भगवान श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य पुरुष का प्रवेश वर्जित है। इस पर शंकर ने गोपियों को ही कुछ उपाय बताने के लिए कहा।


ललिता सखी की सलाह पर महादेव गोपी रूप धारण कर लीला में प्रवेश कर गए। उन्होंने जैसे ही नृत्य करना शुरू किया, उनके सिर से साडी सरक गई। श्रीकृष्ण ने गोपीरूपधारी महादेव को पहचान लिया। मुस्कुराते हुए उन्हें कहा, आइए, महाराज गोपीश्वर!आपका स्वागत है। यह देख राधा क्रोधित होकर रोने लगीं। कहते हैं कि उनके अश्रुओं से वहां मानसरोवर बन गया। दरअसल, वे कृष्ण के असंख्य गोपियों के सामने व्रज से बाहर की एक गोपी को गोपीश्वरसंबोधित करने पर नाराज हो गई थीं। जब उन्हें असलियत पता चली, तो वे शिवजी पर अत्यंत प्रसन्न हुईं। राधा-कृष्ण ने उनसे वरदान मांगने को कहा। शंकरजीने कहा कि आप दोनों के चरण कमलों में हमारा सदैव वृंदावन वास बना रहे। इस पर श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर यमुना के निकट वंशीवट के सम्मुख भगवान शंकर को श्री गोपीश्वरमहादेव के रूप में विराजितकर दिया। साथ ही, उनसे यह कहा कि किसी भी व्यक्ति की व्रज-वृंदावन यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब वह गोपीश्वरमहादेव के दर्शन कर लेगा।

गोपी रूप में श्रृंगार

कालांतर में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभने शांडिल्य ऋषि के सहयोग से वृंदावन में गोपीश्वरमहादेव मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्ठा कराई। समूचे विश्व में यही एकमात्र मंदिर है, जहां विराजे शिवलिंगका श्रृंगार एक नारी की तरह होता है। यह इस बात का प्रतीक है कि यदि कोई जीव परमेश्वर से मिलना चाहे, तो उसे नारी सुलभ समर्पण का भाव अंतस में जाग्रत करना होगा। यहां प्रतिदिन शिवलिंगकी जल, दूध, दही, पंचामृत से रुद्राभिषेक और पूजा-अर्चना होती है। संध्याकाल में नित्य शिवलिंगका गोपी रूप में श्रृंगार होता है। इस मंदिर में पार्वती, गणेश और नंदी आदि गर्भ मंदिर के बाहर विराजमान हैं।

सामान्यतया भगवान शिव के दो रूपों का दर्शन होता है-दिगंबर और बाघंबर वेश में। यहां लहंगा, ओढनी, ब्लाउज, नथ, कर्णफूल, टीका आदि पहन कर और काजल, बिंदी, लाली आदि लगाए गोपीश्वरमहादेव के दर्शन होते हैं। इस वेश में भगवान शिव की छवि अत्यंत मनमोहकलगती है। चैतन्य महाप्रभु वृंदावन के गोपीश्वरमहोदवके दर्शन कर बहुत अधिक भाव-विभोर हो गए थे। कहते है कि उन्हें अप्रकट रूप से अलौकिक दिव्य महारासलीला के दर्शन हुए थे। श्रीपादसनातन गोस्वामी नित्य प्रति गोपीश्वरमहादेव मंदिर का दर्शन करते थे। यहां प्रतिदिन कई अनुष्ठान चलते रहते हैं।

विवाह और पुत्र प्राप्ति के बाद महिलाएं सज-धज कर यहां भोले बाबा के दर्शन के लिए आती हैं। महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहां देश-विदेश के असंख्य भक्त-श्रद्धालुओं का सैलाब उमड पडता है।

Tuesday, April 13, 2010

बैसाखी पर हरिद्वार में लाखों ने लगाई डुबकी

देहरादून। हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ के अवसर पर मंगलवार को बैसाखी के दिन 40 लाख से भी अधिक लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई।

अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बैसाखी के अवसर पर आज सुबह से ही हरिद्वार के विभिन्न घाटों पर लोगों ने स्नान शुरू कर दिया था, जबकि हरकीपौड़ी पर भारी संख्या में लोग स्नान करते हुए देखे गए। महाकुंभ के दौरान आज बैसाखी और कल शाही स्नान को देखते हुए भारी संख्या में लोगों का समूह यहां पहुंचा है।

सूत्रों के अनुसार कल 14 अप्रैल को स्नानार्थियों की संख्या एक करोड़ पार करने की पूरी संभावना है। पूरे मेला के करीब 130 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस समय लोगों की चारों तरफ भारी भीड़ देखी जा रही है।

ऋषिकेश से लेकर ज्वालापुर तक के बीच बनाए गए विभिन्न घाटों पर लोगों को आज भी स्नान करते हुए देखा गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए आज विभिन्न घाटों पर सुरक्षाकर्मियों को विशेष रूप से तैनात किया गया था। किसी को भी घाटों के पास कपडे़ बदलने या कपड़ों को साफ करने की इजाजत नहीं दी गई।

राकेट प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर बनने को तैयार भारत

बेंगलूर। अंतरिक्ष में नया मुकाम हासिल करने के लिए भारत ने अपने महत्वाकांक्षी राकेट मिशन की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस जीएसएलवी-डी3 राकेट के गुरुवार शाम को होने वाले प्रक्षेपण को लेकर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल पर उत्सुकता तेज हो रही है। यह पहला मौका है जब भारत का कोई राकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस होकर अंतरिक्ष में जाएगा। इस अभियान की कामयाबी के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो जाएगा, जिन्हें जटिल क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] के प्रवक्ता एस. सतीश ने मंगलवार को कहा, 'गुरुवार शाम चार बजकर 27 मिनट पर जीएसएलवी-डी3 राकेट अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा। राकेट के प्रक्षेपण के लिए 29 घंटे की उलटी गिनती बुधवार को दिन में 11 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी।' उन्होंने कहा कि जीएसएलवी की सफल उड़ान भारत को राकेट प्रक्षेपण के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देगी।

उल्लेखनीय है कि अब तक भारत अपने स्वदेशी राकेट में रूसी क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल कर रहा था। 18 साल पहले अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण की तकनीक देने से इन्कार कर दिया था। इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन के मुताबिक स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक के शोध और विकास के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा 18 साल से की जा रही अथक मेहनत के कारण ही जीएसएलवी की यह उड़ान संभव होने जा रही है।

जीएसएलवी [जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल] राकेट इस उड़ान के दौरान प्रायोगिक संचार उपग्रह जीसेट-4 को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इस उपग्रह की उम्र सात साल तय की गई है। इस उपग्रह के जरिए इसरो ने इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम और बस मैनेजमेंट यूनिट सरीखी कुछ नई तकनीकों के परीक्षण का लक्ष्य तय किया है।

Wednesday, April 7, 2010

आरती क्यों और कैसे?

पूजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाडे, घडियाल आदि भी बजाना चाहिए।

एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या [जैसे 3,5या 7]में बत्तियां जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारतीकहलाती है। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।

कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।

यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।

जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।

नारियल- आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।

सोना- ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है।

यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडने का माध्यम भी माना जाता है।

तांबे का पैसा- तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।

सप्तनदियोंका जल-गंगा, गोदावरी,यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरीऔर नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज्यादातर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी। सुपारी और पान- यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देते हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ जाती है। पान की बेल को नागबेलभी कहते हैं।

नागबेलको भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडने वाली कडी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।

तुलसी-आयुर्र्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।

हम साथ-साथ


नई दिल्ली में बृहस्पतिवार, 21 जनवरी को अपने आवास पर आयोजित समारोह के दौरान राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार विजेता बच्चों के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। इस दौरान पर कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूद थीं। बच्चों को उनकी बहादुरी के कारनामों के लिए शाबाशी दी गई।

कार्निवल की मस्ती


ब्राजील के रियो द जनेरियो में दुनिया के सबसे लोकप्रिय उत्सव ब्राजील कार्निवल का आयोजन किया जाता है। हर साल फरवरी में आयोजित होने वाले इस आयोजन में ब्राजील का लोकप्रिय नृत्य सांबा डांस और परेड को देखने दुनिया भर के सैलानी खिंचे चले आते हैं।

बिना मेकअप के हीरोइन

हाल ही में पूर्व मिस यूनिवर्स लारा दत्ता ने अपने ट्विटर अकाउंट में अपनी क्लोजअप पिक्चर पोस्ट की है। खास बात यह है कि लारा इसमें कंप्लीटली विदआउट मेकअप हैं। किसी भी हीरोइन के लिए यह बड़ी हिम्मत की बात है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी भारतीय अभिनेत्री ने आम लोगों के सामने खुद को बिना मेकअप के पेश किया हो। खुद को ज्यादा से ज्यादा सुंदर और जवान दिखाने की लालसा उन्हें ऐसा करने से रोकती है। लेकिन लारा जैसा जिगर सबके पास कहां। लारा ने तो एक सामान्य लड़की जैसी छवि वाली अपनी ओरिजनल फोटो, जिसे न तो किसी तकनीक से न ही डिजिटली बनाया गया है, जारी करके तहलका मचा दिया है।

किसी पब्लिक इवेंट में, फोटोग्राफरों से यह निवेदन किया जाता है कि हीरोइनों का फोटो उस वक्त न खींचें, जब वे खाना खा रही हों। डर यह होता है कि इससे वे फोटो में अच्छी नहीं लगेंगी। इसी डर के कारण आज तक कोई हीरोइन बिना मेकअप के कैमरे के सामने नहीं आई है। लारा ने ट्विटर पर यह पिक्चर डालकर एक नए ट्रेंड को परिभाषित कर दिया है। लारा ने ट्विटर पर फोटो के साथ लिखा है - उन लोगों के लिए, जो बिना मेकअप पिक चाहते हैं।

ट्विटर जैसी तमाम नेटवर्रि्कग साइट्स पर पॉपुलर भारतीय हीरोइनें जैसे, प्रियंका चोपड़ा और मल्लिका शेरावत अपनी फोटो भेजते वक्त काफी केयरफुल रहती हैं।

मुंबई के मशहूर फोटो जर्नलिस्ट योगेन शाह कहते हैं, 'दरअसल, बॉलीवुड की हीरोइनों को नेचुरल लुक में पकड़ना बहुत कठिन है। आप ऐसा फोटो नहीं ले सकते। अगर किसी अवसर पर वे खुश नहीं हैं या वे अपने कम मेकअप में हैं, तो वे फोटोग्राफरों से फोटो न खींचने को कहती हैं। फोटोग्राफर भी अमूमन उनकी ब्यूटीफुल पब्लिक इमेज को खराब नहीं करना चाहते।'

लारा की इस हिम्मत को हम उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस ही कह सकते हैं। सेलिब्रिटी कॉस्मेटिक डेंटिस्ट डॉ. सुशांत उमरे शाहरुख खान के साथ काम कर चुके हैं और लारा दत्ता के साथ भी मिस यूनिवर्स के जमाने से जुड़े रहे हैं। वे कहते हैं, 'लारा हमेशा से ही कॉन्फिडेंट रही है। यहां तक कि जब लारा मिस यूनिवर्स बनी, इसके पहले वह जो भी थी, उस पर कंफर्टेबल थी। वह कहते हैं, अन्य मिस इंडियाज की तरह उसने मुझसे कभी नहीं कहा कि उसे कोई अच्छी स्माइल डिजाइन दें। वह सिर्फ टीथ ब्लीचिंग करके अपना नेचुरल लुक बढ़ाना चाहती थी। वह जैसी है, उसी में अच्छा फील करती है।

हां, हॉलीवुड में डैमी मूर ने जरूर अपने नेचुरल लुक को सार्वजनिक किया था, जिसमें उसका आगे का दांत गायब था।

Monday, April 5, 2010

हरियाली ओढे, सीढीनुमा खेतों से सजी, स्वास्थ्यव‌र्द्धक चीड व अन्य वृक्षों से आबाद पहाडियों के बीच मैदाननुमा खुली जगह पर चारों ओर भीड लगी है। सुंदर, सजीली, भोली, लजीली, कोमल पहाडी युवतियां मेले में पारंपरिक सलवार कुर्ता, घाघरा पहने सर पर चटकीले रंगबिरंगे ढाठू बांधे, मेले में लगी दुकानों पर खिलखिलाते हुए मंडरा रही हैं। उधर मैदान के हर ओर हजारों गांववासी मनपसंद परिधानों में जमे हुए प्रतीक्षा कर रहे हैं। गप्पे लड रही हैं, आंखें मटक रही हैं। पुराने संबंधियों व मित्रों से मुलाकातों के बीच अपनी पसंद का साथी खोजा जा रहा है। कहीं रोमांस भी अंकुरित हो रहा है। पहाडी नाटी के साथ साथ रीमिक्स भी बज रहा है। इसी सैलाब में बिखरे दूर-दूर से आए सैलानी भी खुद को माहौल के अनुरूप ढाल रहे हैं।

मैदान के आसपास रोमांच की सुगबुगाहट है, दर्शकों की बातचीत के बीच प्रतिस्पद्र्धा जवान हो रही है। मैदान के एक ओर से ढोल-नगाडे, शहनाई, रणसिंघा, करताल, मृदंग, दमामठू व तुरही की जोश बढाती रणभेरी सी आवाजों की बीच तलवारें, भाले, खुखरिया, डांगरे, लाठियां, बंदूकें व तीर-कमान लहराते हुए एक योद्धा दल युद्धस्थल की ओर बढ रहा है। मैदान के दूसरे छोर से आ रहा दूसरा दल भी जोश-खरोश के साथ अपने जौहर दिखाने को बेताब है। दोनों दलों के सदस्य व समर्थक कंधे उचकाकर एक-दूसरे के विरोधी लोकगीत गा रहे हैं। माहौल में उत्सव घुल गया है ठोडा के लिए सब तैयार हैं।

दुनिया में तीरंदाजी की कितनी ही शैलियां हैं मगर हिमाचल व उत्तराखंड की पर्वतावलियों के बाशिंदों की यह तीरकमानी अद्भुत व निराली है। माना जाता है कि कौरवों व पांडवों की यादें इन पर्वतीय क्षेत्रों में अभी तक रची-बसी हैं। ठोडा योद्धाओं में एक दल पाशी (पाश्ड, पाठा, पाठडे) यानी पांच पांडवों का है और दूसरा शाठी (शाठड, शाठा, शठडे) यानी कौरवों का। जनश्रुतियों के अनुसार कौरव साठ थे सो शाठड (साठ) कहे जाते हैं। कभी कबीलों में रह चुके यह दल अपने को कौरवों व पांडवों के समर्थन में लडे योद्धाओं का वशंज मानते हैं।

पहले ठोडा हो जाए

इसके लिए धनुर्धारी कमर से नीचे मोटे कपडे, बोरी या ऊन का घेरेदार वस्त्र लपेटते हैं या फिर चूडीदार वस्त्र (सूथन) पहनते हैं। मोटे-मोटे बूट, कहीं-कहीं भैंस के चमडे से बनाए गए घुटनों तक के जूते साधारण कमीज व जैकेट धारण होता है। पहाडी संस्कृति के विद्वान बताते हैं कि ठोडा का धणु (धनुष) डेढ से दो मीटर लंबा होता है और चांबा नामक एक विशेष लकडी से बनाया जाता है। शरी (तीर) धनुष के अनुपात में एक से डेढ मीटर का होता है और स्थानीय बांस की बीच से खोखली लकडी नरगली या फिरल का बनाया जाता है, जिसके एक तरफ खुले मुंह में अनुमानत दस बारह सेंटीमीटर की लकडी का एक टुकडा फिक्स किया जाता है जो एक तरफ से चपटा व दूसरी तरफ से पतला व तीखा होता है और नरगली के छेद से गुजारा जाता है। चपटा जानबूझ कर रखा जाता है ताकि प्रतिद्वंद्वी की टांग पर प्रहार के समय लगने पर ज्यादा चोट न पहुंचे। दिलचस्प यह है कि इस लकडी को ही ठोडा कहते हैं। इस खेल युद्ध में घुटने से नीचे तीर सफलता से लगने पर खिलाडी को विशेष अंक दिए जाते हैं। वहीं घुटने से ऊपर वार न करने का सख्त नियम है। जो करता है उसे फाउल करार दिया जाता है। ठोडा में अपने चुने हुए प्रतिद्वंद्वी की पिंडली पर निशाना साधा जाता है, दूसरे प्रतिद्वंद्वी पर नहीं। जिस व्यक्ति पर वार किया जाता है वह हाथ में डांगरा लिए नृत्य करते हुए वार को बेकार करने का प्रयास करता है। बच जाता है तो वह प्रतिद्वंद्वी का मजाक उडाता है, मसखरी करता है। इस तरह खेल-खेल में मनोरंजन हो जाता है और ठोडा खेलने वालों का जोश भी बरकरार रहता है। फिर दूसरा खिलाडी निशाना साधता है। लगातार जोश का माहौल बनाने वाले लोक संगीत के साथ-साथ खेल यूं ही आगे बढता रहता है। कई बार खेलने वाले जख्मी हो जाते हैं मगर ठोडा के मैदान में कोई पीठ नहीं दिखाता। खेल की समयावधि सूर्य डूबने तक निश्चित होती है। शाम उतरती है तो थकावट चढती है और रात मनोरंजन चाहती है। स्वादिष्ट स्थानीय खाद्यों के साथ मांस, शराब पेश की जाती है और नाच-गाना होता है। अगले दिन फिर ठोडा आयोजित किया जाता है।

पाशी और शाठी दोनों की परंपरागत खुन्नस शाश्वत मानी जाती है मगर खुशी गम और जरूरत के मौसम में वे मिलते-जुलते हैं और एक दूसरे के काम आते हैं। उनमें आपस में रिश्तेदारियां भी हैं। जब बिशु (बैसाख का पहला दिन) आता है तो पुरानी नफरत थोडी सी जवान होती है, गांव-गांव में युद्ध की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिसे किसी वर्ष शाठी आयोजित करते हैं तो कभी पाशी। कबीले का मुखिया बिशु आयोजन के दिन प्रात: कुलदेवता की पूजा करता है और अपने सहयोगियों के साथ ठोडा खेलने आ रहे लोगों के आतिथ्य और अपनी जीत के लिए मंत्रणा करता है। युद्ध प्रशिक्षण का अवशेष माने जाने वाले ठोडा में खेल, नृत्य व नाट्य का सम्मिश्रण है। धनुष बाजी का खेल, वाद्यों की झंकार में नृत्यमय हो उठता हैं। खिलाडी व नाट्य वीर रस में डूबे इसलिए होते हैं क्योंकि यह महाभारत के महायुद्ध से प्रेरित है। भारतीय संस्कृति के मातम के मौसम में पहाड वासियों ने लुप्त हो रही सांस्कृतिक परंपरा को जैसे-तैसे करके जीवित रखा है। कौशल, व्यायाम व मनोरंजन के पर्याय ठोडा को हमारी लोक संस्कृति के कितने ही उत्सवों में जगह मिलती है जहां पर्यटक भी होते हैं और स्थानीय लोग भी।

कहां, कब व कैसे

ठोडा आम तौर पर हर साल बैसाखी के दो दिनों- 13 व 14 अप्रैल को होता है। शिमला जिले के ठियोग डिवीजन, नारकंडा ब्लॉक, चौपाल डिवीजन, सिरमौर व सोलन में कहीं भी इसका आनंद लिया जा सकता है। नारकंडा, सिरमौर व सोलन- इन सभी स्थानों पर ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था है।



दिल्ली से उड़ेगा विश्व का सबसे बड़ा विमान

बहुत जल्द इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से विश्व के सबसे बडे़ एयरक्राफ्ट ए-380 का व्यावसायिक संचालन भी संभव हो सकेगा। नव निर्माणाधीन टर्मिनल टी-थ्री के खास हिस्से को कुछ इस तरह तैयार किया जा रहा है, जिससे आईजीआई एयरपोर्ट से एयरक्राफ्ट ए-380 का संचालन संभव हो सके। इस खास हिस्से में एयरक्राफ्ट ए-380 के अनुरूप तीन पेयर वाले दो मंजिला एयरोब्रिज सहित नौ सौ यात्रियों से अधिक क्षमता वाला लाउंज तैयार किया जा रहा है।

दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड का दावा है कि टर्मिनल थ्री से ए-380 का संचालन शुरू होने के बाद आईजीआई विश्व के उन चुनिंदा एयरपोर्ट में शामिल हो जाएगा, जहां से ए-380 का संचालन संभव है। डायल के मुताबिक ए-380 दो मंजिला विमान है। इसमें यात्रियों के प्रवेश एवं निकास के लिए दोनों मंजिलों में अलग अलग द्वार हैं। इन सभी द्वारों से यात्रियों को विमान में भेजने के लिए नव निर्माणाधीन टर्मिनल में नौ विशेष एयरोब्रिज बनाए जा रहे हैं। इनमें से छह एयरोब्रिज टर्मिनल के अंतरराष्ट्रीय भाग एवं तीन एयरोब्रिज टर्मिनल के घरेलू भाग की ओर तैयार किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त एयर साइड में तीन रिमोट स्टैंड तैयार किए जा रहे हैं, जहां पर एयरक्राफ्ट ए-380 को खड़ा किया जा सके। एयरक्राफ्ट से यात्रियों के शीघ्र आगमन एवं निकास के लिए टर्मिनल के एयरोब्रिज में एक साथ तीन गेट बनाए जा रहे हैं। यह गेट विमान के पहली व दूसरी मंजिल में एक साथ लगाए जा सकेंगे। वहीं लगभग 80 मीटर चौड़े एवं 73 मीटर लंबे इस विमान को खड़ा करने के लिए अधिक चौड़े पार्किंग स्टैंड तैयार किए जा रहे हैं। इस विमान की लैंडिंग के बाद अत्यधिक क्षमता वाले ट्रैक्सी वे की जरूरत को देखते हुए आईजीआई एयरपोर्ट पर 15 किलोमीटर लंबा एक नया ट्रैक्सी वे तैयार किया गया है। डायल के अधिकारियों के मुताबिक विश्व के सबसे बडे एयरक्राफ्ट ए-380 में एक साथ करीब साढे आठ सौ यात्री सवार हो सकते हैं। एक विमान में एक साथ इतने अधिक यात्रियों की संख्या को देखते हुए नव निर्माणाधीन टर्मिनल में एक विशेष लांज तैयार किया जा रहा है, जिसमें एक साथ नौ सौ यात्री बैठ सकें। वहीं इस विमान से आने वाले यात्रियों को अपने सामान के लिए ज्यादा इंतजार न करना पडे़, इसके लिए टर्मिनल थ्री में अत्यधिक क्षमता वाली बारह बैगेज बेल्ट लगाई जा रही हैं।

Friday, April 2, 2010

सेक्स कई रोगों की दवा है सेक्स : कई प्रॉब्लम्स का अचूक उपाय

आप शीर्षक पढ़कर चौंक गए होंगे कि भला सेक्स रोगों की दवा हो सकता है? इसमें चौंकने की कोई बात नहीं है। डॉक्टरों वैज्ञानिकों ने शोध करके यह पता लगाया है कि सेक्स अनेक रोगों की दवा भी है। जहाँ जीवन में सेक्स एक-दूजे के बीच सुख, आनंद, अपनापान लाता है, वहीं एक-दूजे की हेल्थ ब्यूटी को भी बनाए रखता है।

सेक्स से शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोन उत्पन्न होते हैं, जो शरीर के स्वास्थ्य एवं सौंदर्य को बनाए रखने में सहायक होते हैं। सेक्स से शरीर में उत्पन्न एस्ट्रोजन हार्मोन 'ऑस्टियोपोरोसिस' नामक बीमारी नहीं होने देता है। सेक्स से एंडोर्फिन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्किन सुंदर, चिकनी चमकदार बनती है। एस्ट्रोजन हार्मोन शरीर के लिए एक चमत्कार है, जो एक अनोखे सुख की अनुभूति कराता है।

सफल नियमित सेक्स करने वाले मैरिड कपल अधिक स्वस्थ देखे गए हैं। उनका सौंदर्य भी लंबी उम्र तक बना रहता है। उनमें उत्तेजना, उत्साह, उमंग और आत्मविश्वास भी अधिक होता है। सेक्स से परहेज करने वाले शर्म, संकोच, अपराधबोध तनाव से पीड़ित रहते हैं।

दिमाग को तरोताजा रखने तनाव को दूर करने के लिए नियमित सेक्स एक अच्छा उपाय है। सेक्स के समय फेरोमोंस नामक रसायन शरीर में एक प्रकार की गंध उत्पन्न करता है, जिसे आप सेक्स परफ्यूम भी कह सकते हैं। यह सेक्स परफ्यूम दिल दिमाग को असाधारण सुख शांति देता है। सेक्स हृदय रोग, मानसिक तनाव, रक्तचाप और दिल के दौरे से दूर रखता है। सेक्स से दूर भागने वाले इन रोगों से अधिक पीड़ित रहते हैं।

सेक्स व्यायाम भी है :
सेक्स एक प्रकार का व्यायाम भी है। इसके लिए खास किस्म के सूट, शू या महँगी एक्सरसाइज सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। जरूरत होती है बस शयनकक्ष का दरवाजा बंद करने की। सेक्स व्यायाम शरीर की मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करता है और शरीर को लचीला बनाता है। एक बार की संभोग क्रिया, किसी थका देने वाले व्यायाम या तैराकी के 10-20 चक्करों से अधिक असरदार होती है। सेक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार मोटापा दूर करने के लिए सेक्स काफी सहायक सिद्ध होता है।

सेक्स से शारीरिक ऊर्जा खर्च होती है, जिससे कि चर्बी घटती है। एक बार की संभोग क्रिया में 500 से 1000 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। सेक्स के समय लिए गए चुंबन भी मोटापा दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स के समय लिए गए एक चुंबन से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह 390 बार चुंबन लेने से 1/2 किलो वजन घट सकता है।

Thursday, April 1, 2010

Earn Money By Only Posting

Make money from the web

Shahrukh Khan's home