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Thursday, April 3, 2014

पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं...

पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं...
पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते है, ब्रांडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते है, पिताजी आज भी पैसे बचाते है...

टूटे चश्मे से ही अख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते है, टोपाज के ब्लेड से दाढ़ी बनाते है, पिताजी आज भी पैसे बचाते है…

कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते है, बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते है, आटा नहीं खरीदते गेहूँ पिसवाते है, पिताजी आज भी पैसे बचाते है…

स्टेशन से घर पैदल ही आते हैं, रिक्शा लेने से कतराते हैं, सेहत का हवाला देते जाते हैं, बढती महंगाई पे चिंता जताते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं...

पूरी गर्मी पंखे में बिताते हैं, सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते हैं, एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते हैं, लाइट खुली छूटने पे नाराज हो जाते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं...


माँ के हाथ के खाने में रमते जाते हैं, बाहर खाने
 में आनाकानी मचाते हैं, साफ़-सफाई का हवाला देते जाते हैं, मिर्च, मसाले और तेल से घबराते हैं, पिताजी आज भी पैसे बचाते हैं…

गुजरे कल के किस्से सुनाते हैं, कैसे ये सब जोड़ा गर्व से बताते हैं, पुराने दिनों की याद दिलाते हैं, बचत की अहमियत समझाते हैं,
हमारी हर मांग आज भी, फ़ौरन पूरी करते जाते हैं, पिताजी हमारे लिए ही पैसे बचाते हैं..

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