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Tuesday, April 13, 2010

राकेट प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर बनने को तैयार भारत

बेंगलूर। अंतरिक्ष में नया मुकाम हासिल करने के लिए भारत ने अपने महत्वाकांक्षी राकेट मिशन की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस जीएसएलवी-डी3 राकेट के गुरुवार शाम को होने वाले प्रक्षेपण को लेकर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल पर उत्सुकता तेज हो रही है। यह पहला मौका है जब भारत का कोई राकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस होकर अंतरिक्ष में जाएगा। इस अभियान की कामयाबी के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो जाएगा, जिन्हें जटिल क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] के प्रवक्ता एस. सतीश ने मंगलवार को कहा, 'गुरुवार शाम चार बजकर 27 मिनट पर जीएसएलवी-डी3 राकेट अंतरिक्ष के लिए रवाना होगा। राकेट के प्रक्षेपण के लिए 29 घंटे की उलटी गिनती बुधवार को दिन में 11 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी।' उन्होंने कहा कि जीएसएलवी की सफल उड़ान भारत को राकेट प्रक्षेपण के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देगी।

उल्लेखनीय है कि अब तक भारत अपने स्वदेशी राकेट में रूसी क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल कर रहा था। 18 साल पहले अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण की तकनीक देने से इन्कार कर दिया था। इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन के मुताबिक स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक के शोध और विकास के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा 18 साल से की जा रही अथक मेहनत के कारण ही जीएसएलवी की यह उड़ान संभव होने जा रही है।

जीएसएलवी [जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल] राकेट इस उड़ान के दौरान प्रायोगिक संचार उपग्रह जीसेट-4 को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इस उपग्रह की उम्र सात साल तय की गई है। इस उपग्रह के जरिए इसरो ने इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम और बस मैनेजमेंट यूनिट सरीखी कुछ नई तकनीकों के परीक्षण का लक्ष्य तय किया है।

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